चलो-चलो कि चकल्लस फिर शुरू हो गई चुनाव की
बैतूल/शाहपुर, (सचिन शुक्ला)। नगर में चुनावी चकल्लस फिर शुरू हो गई है। चुनाव भी ना छोटा है ना बड़ा। चुनाव है नगर पंचायत का नगर पंचायत यानी दुधारू गाय । शासन द्वारा ग्राम पंचायत से उन्नयन कर नगर पंचायत बनाने के बाद से अब तक यह गाय सड़कों पर थी, ठीक आवारा मवेशी सी या कहें कि सरकारी गौशाला में कैद थी। प्रशासनिक अधिकारी इस गाय को पाल रहे थे, या कहो कि जैसे तैसे संभाल रहे थे बात एक ही है।
बहरहाल अब चुनावी बिगुल बजते ही यह गाय बिल्कुल कामधेनु सी लग रही है। गाय के दोहन का अवसर आ गया है, तो इतने वारिसान इस गाय दुहने को तैयार हैं कि गाय कन्फूज है रंभाए कि घासफूस खाए और सो जाए। परिषद का सभाकक्ष और अध्यक्ष, पार्षद पदों की कुर्सी गीत गाती नजर आ रही है कि ‘कबीरा खड़ा बाजार में ‘ लूट सके तो लूट।
अप्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव होना मानो सोने पर सुहागा। कुल मिलाकर लूट की खुली छूट। नगर पंचायत चुनाव की बाजार में वोटों की धांधली चले ना चले अप्रत्यक्ष रूप से नोट की धांधली जमकर चलेगी। कई तो इस फिराक में चुनावी चकल्लस में कूद रहे हैं कि कमाई का अच्छा अवसर प्राप्त हुआ है । कोई किसी का दामन पकड़ेगा, तो कोई जो बरसों किसी की गोद में पला बढ़ा, वो नई संतान के लिए लतिया दिया जाएगा।
यह तो वक्त ही बताएगा कि जो पिता की लुटी विरासत छोड़कर चमक बटोरने आएगा उसके हिस्से लूट की गठरी आएगी या बची बचाई लुट जाएगी। जो भी हो इस चुनाव मजा बहुत आएगा नए चेहरे और उनके नए मोहरे दिखेंगे नगर परिषद बनने के बाद यह पहला मौका होगा कि ग्रामवासी अब नगरवासी कहलायेंगे और नगर परिषद निर्वाचन के पार्षद चुनने की पहली बार वोटिंग करेंगे । मजे के बात है कि नगर परिषद शाहपुर में अध्यक्ष की सीट अनारक्षित है । जिसके चलते नगर के दिग्गज फिर गली सड़कों पर दौड़ लगाते दिखेंगे।
नेता जिस जनता को दौड़ाते रहे अब उस जनता का बिन बुलाए घर खूंद खाएंगे, नाते रिश्ते अपने पराये सब याद दिलाएंगे। और हाँ उमर में छोटे हो या बड़े आपके पैर भी छू जाएंगे। छूटभैए राजा हो जाएंगे और फुरसती व्यस्त कुल मिलाकर सबकुछ मजेदार होगा मानो चमत्कार ही चमत्कार पहले जब अनुच्छेद की धारा 6 प्रभावी नही थी तब शाहपुर ग्राम पंचायत थी ठीक वैसे, जैसे हमेशा होते आए हैं। सो ऐसी परिषद की चुनावी चकल्लस मिल बैठकर ना करी तो क्या किया
अप्रत्यक्ष प्रणाली से होंगे नगर परिषद अध्यक्ष चुनाव
अनुभवियों की समझें तो ऐसा इसलिए क्योंकि कई उठैए झलैए तो इसलिए चुनाव मैदान में बिन तरकश कूदेंगे कि केवल नाम वापसी के लिए मान मनौव्वल के साथ जेब गरम हो सकती है। क्योंकि जो वास्तविक लड़ैए हैं उन्हें वोट कटने का डर सताएगा।
दिल्ली भले दूर है, पर जो जीत जाएंगे वे अध्यक्ष बनाएंगे। तो तय मानो कि अपने अध्यक्ष को सिंहासन पर बिठाने पार्षदों की भी लपककर खरीद फरोख्त होगी। जन सामान्य को सामान्य सुविधाएं मिलें ना मिलें पर कुल मिलाकर चुनाव के बाजार में रूपैया बरसेगा। जहां रूपैया ना चलेगा वहां रूतबा चलेगा। जहां रूतबे से काम ना हुआ वहां दांव, पेंच, उठा, पटक सब चलेगी। यह बात हवा हवाई इसलिए नहीं कही जा सकती इतिहास गवाह है क्योंकि जब तक अप्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव होते हैं तब तक नगर पंचायतो के सिंहासन पर प्रतिष्ठितों, धन सम्पन्न या कहें किंग मेकर्स के संरक्षण में रहा।